मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Tuesday 31 January 2012

दो बुँदे

हर किसी कि पीर पर ,
गिर जाएँ यदि दो बुँदे ,
तो वह ,
नीर की बुँदे नही,
सीप के मोती हैं !
आखिर नीर ही तो,
मोती  बनता है ,
सीप के मुख मे !
पर  /अगर ,
स्वयं  की पीर पर ,
नयनों से नीर बह जाये तो ,
तो ,परम कायरता है वह !
नीर नही ,जहर है !वह ,
सर्प के मुख का ,
आखिर नीर ही तो जहर बनता है ,
सर्प के मुख मे !
मुनि श्री 108 सुधासागर जी "दस धर्म सुधा " मे

आज काविचार 31 .01.2012




बुढापा अभिशाप नही अनुभव का खजाना है !


आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु
,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

Monday 30 January 2012

अमृत न पिलाने को घर मे तो जहर पिलाते भी डरना

                              मै नही कहता हूँ किसी का कोई उपकार करो ,मै तो यही कहता हूँ कि किसी का अपकार मत करो ! मै यह नही कहता कि किसी को अमृत दो ,मै यह कहता हूँ कि किसी को जहर तो मत दो ! मै नही कहता किसी को दो रोटियां दो ,मै यह कहता हूँ कि किसी के पेट पर लात तो मत मारो ! मै यह नही कहता किसी की आँख के आँसू समेट लो ,मै यह कहता हूँ कि किसी की आँखों मे आँसू तो मत गिराओ ! मै यह नही कहता हूँ कि किसी को मकान बना कर दो ,मै  यह कहता हूँ कि किसी की झोंपड़ी तो मत उजाडो ! मै यह नही कहता कि कारों मे मत चलो ,मै यह कहता हूँ कि कारों से (अंधाधुंध ) जीवों को तो मत कुचलो ! मै यह नही कहता कि सेठ मत बनो ,मै यह कहता हूँ कि दूसरों का पेट काट कर तो सेठ मत बनो !
मुनि श्री 108 सुधासागर जी "दस धर्म सुधा " मे 


आज का विचार 30 .01.2012



जिनवाणी कहती है जिसका ह्रदय शुद्ध ,सरल व
सात्विक होगा वही धर्म मे स्थिर होगा ! 


आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु
,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

Sunday 29 January 2012

"दुर्जन क्रूर कुमार्ग्ररतों पर क्षोभ नही मुझको आवे "

                 जिसके अंदर इच्छा शक्ति है ,प्रभु के प्रति आस्था है ,सत्ता मे पुण्य प्रकृति बैठी है ,उसका दुनिया की कोई ताकत कुछ नही बिगाड़ सकती ! न जाने क्यों किस-किस ने कितने कितने लोगों ने बिगाड़ने का मात्र अहंकार किया है ,क्रोध को उत्पन्न किया है लेकिन बिगाड़ नही पाए ! आचार्य कहते हैं  बिगाड़ने मे भी कभी -कभी बनाने के लक्षण छुपे होते हैं ! चिंता नही कर ! समता परिणाम धारण करने वाले को सूली भी सिंहासन हो जाती है ,जैसे सेठ सुदर्शन को हुई ! सर्प भी फूल माला बन जाती है जैसे सोमा सती के साथ हुआ !
                क्षमा रुपी तलवार जिसके हाथ मे है ,दुर्जन उसका क्या कर सकता है ,जैसे  इंधन से रहित स्थान मे अग्नि स्वयं शांत हो जाती है !
            "दुर्जन क्रूर कुमार्ग्ररतों  पर क्षोभ नही मुझको आवे "
              कितनी बड़ी बात कही है तुम भले ही सज्जन हो पर दूसरों की दुर्जनता पर क्षुभित मत होना !कोई प्रश्न कर सकता है कि उन पर तो क्षोभ करना चाहिये जो कुमार्गरत हैं ,आचार्य कहते हैं -नही ! उन पर भी क्षुभित होने की आवश्यकता नही है उनके प्रति मध्यस्थ होने की आवश्यकता है !
             क्षमा मनुष्य को माता के समान है ! हितकारी है ! माता तो एक समय फिर भी क्रोध को प्राप्त हो सकती है ,क्षमा नही ! अर्थात क्षमावान व्यक्ति कभी भी क्रोध को प्राप्त नही हो सकता !
मुनि श्री 108 सुधासागर जी "दस धर्म सुधा " मे

आज का विचार 29.01.2012



ऐसी जवानी देखी जिसमे बिना बात हँसी आती है और
ऐसा बुढापा देखा जिसमे बात पर भी हँसी नही आती 

आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु
,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

Saturday 28 January 2012

निंदक नियरे राखिये

             नीच बन जाता है ,इंसा सजाएं देकर 
          जीतना  चाहिये दुश्मन को दुआएं देकर 
            भारतीय परम्परा मे शत्रु के प्रति दया का भाव देखा जाता  है , और शत्रुता के प्रति त्याग और घृणा का भाव देखा जाता है ! यहाँ व्यक्ति प्रधान नही गुण प्रधान हैं ! हमारे अंदर कोई बुराई न पनपे इसके लिए तो किसी ने यहाँ तक कहा है कि अपनी निंदा करने वाले को अपने पास  रखें - 
निंदक नियरे राखिये ,आँगन दरी छवाय 
बिन पानी साबुन बिना ,निर्मल करे सुभाय 
          इसका  अर्थ यह नही है कि निंदकों को बुला लो ,इसका अर्थ ये है कि निंदक आ जाए तो मौन धारण कर लो ! "आँगन दरी छवाय " का अर्थ लिपाई ,पुताई नही ,आँगन दरी छवाय का अर्थ है पवित्रता ! आत्मा को पवित्र करते हुए मौन धारण कर लेना ! उससे कोई मतलब नही , उसकी उपेक्षा कर देना ! उपेक्षा का अर्थ है नासाग्र दृष्टि ! नासाग्र दृष्टि कर लो ,तो दुनिया अपने आप छूट जायेगी ! 
              क्षमा का अर्थ है ,पर को  निरपेक्ष करके आत्मा के शांत स्वभाव मे स्थिर हो जाना ,पर निरपेक्ष हुए बिना आत्मा के शांत स्वभाव को नही पाया जा सकता ! जब मै चाह रहा हूँ कि मेरी आत्मा मे शान्ति प्राप्त होवे तो क्यों नही होती ? जब मै चाहता हूँ कि आत्मा के स्वभाव कि उपलब्धि होवे तो क्यूँ नही होती है ? अनंत काल हो गया सुख चाहिए ,मिला क्यों नही ? खोजो आगे पीछे देखो ! आगे पीछे झाँकने के बाद थोडा नीचे झांकना ,निमित्त को पहचानना है ! निमित्त को मत हटाओ ! निमित्त से स्वयं हट जाओ ! जब स्वयं निमित्त से हट जाओगे तो अपने आप अकिंचित्कर हो जाएगा ! निमित्त  अपने स्थान पर पड़ा रहेगा ! तुम्हारा कोई बाल भी बांका नही कर सकेगा ! निमित्त अकिंचित्कर करने एक अर्थ है ,निमित्त जैसे ही तुन्हें सामने मिले ,दुर्जन क्रूर व्यक्ति जैसे ही तुम्हारे सामने आये ,तो तुम सावधान हो जाना ,अपने से कहना ,मुझे मेरी परीक्षा देने का मौका मिल गया ,अच्छा है तुम गाली दे रहे हो , मै समझ लूँगा अब मेरे मे कितनी समता पैदा हुई है ! मै अपनी परीक्षा तो कर पाऊं गा ! 
मुनि श्री 108 सुधासागर जी "दस धर्म सुधा " मे

आज का विचार 28.01.2012



जैसे दूध बिलोते बिलोते मक्खन निकलता है ,वैसे हि
आत्म भावना करते करते आत्म ध्यान साध जाता है !

आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु
,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

Friday 27 January 2012

महावीर व गांधी की क्षमा

             महात्मा गांधी और महावीर की क्षमा मे थोडा अंतर है ,गांधी कहते हैं कि यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो तुम दूसरा गाल भी उसके सामने कर दो कि लो एक और थप्पड़ मार लो ,महावीर इससे आगे थे !महावीर कहते थे कि यदि तुमने दूसरा गाल आगे कर दिया तो ये तो हिंसा का ,क्रोध का समर्थन हो गया कि एक और मारिये और तुम कौन होते हो उससे ये कहने वाले लो एक और मार लो ? उसकी इच्छा होगी तो क्या गाल पर एक थप्पड़ और मारने दोगे ? पिटने वाला क्षमावान व्यक्ति कभी भी यह नही कह  सकता है कि और मारना है क्या ?इसका मतलब है कि पिटने वाला वह व्यक्ति अहंकार मे चला गया और कह रहा है कि मै इतना क्षमावानी हूँ कि तु एक और मार ले !मुझे क्रोध नही आएगा ! वह सबसे बड़ा क्रोधी है ,सबसे बड़ा अहंकारी है !
                 कुछ क्रोध वचनों से प्रकट होता है,कुछ क्रोध आँखों से प्रकट होता है , कुछ क्रोध पिटने से भी प्रकट होता है ,पिटने का शौक होना भी एक प्रकार का क्रोध को दर्शाता है ! लो मारो ,कितना मारना है ! मुझे किंचित मात्र भी क्रोध आने वाला नही है ,वह सबसे बड़ा क्रोधी है !अहंकारी है !
               महावीर कि क्षमा कहती है ,उसने एक मारना था ,मार लिया ,उसका विरोध मत करो ,गिडगिडाओ मत ,कायर मत बनो !जो उसे करना है वो करे ,लेकिन तुम अपना क्षमा धर्म मत छोडो ! यही उत्तम क्षमा है !
मुनि श्री 108 सुधासागर जी "दस धर्म सुधा " मे

आज का विचार 27.01.2012



मैले शीशे मे प्रतिबम्ब नही दीखता ,इसी तरह
राग द्वेष से मलिन आत्मा मे सत्य का प्रकाश
नही दीखता !

आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु
,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

Thursday 26 January 2012

आज का विचार 26.01.2012




प्रत्येक गृहस्थ को पहले कानों को उपदेश रुपी भोजन देना
चाहिये ,फिर जुबान को !

आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु
,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

Wednesday 25 January 2012

जिनवाणी

धन कन  कंचन राज सुख ,सब ही सुलभ कर जान ,
दुर्लभ है संसार मे एक जथारथ ज्ञान !
                                              प० भूधर दास जी 
परिजन  धन कुछ न चले अन्त समय मे साथ 
ज्ञान अडिग निज की निधि ,भव भव जावे साथ !
       आचार्यों ने जिनवाणी को माता कहकर पुकारा है तथा उसकी स्तुति की है ,जिस प्रकार माता दूध पिलाकर बच्चे को बड़ा करती है ,उसी प्रकार जिनवाणी माता ज्ञानामृत पिलाकर अज्ञान रुपी अन्धकार को मेट ,सच्चा मार्गदर्शन करती है ! इसिलिए आचार्य पदमनंदी " पंचविर्ष्तिका "ग्रन्थ मे लिखते हैं -
       हे जिनवाणी माता ! महान ऋषिगण पहले तेरा आश्रय लेकर ही मोक्ष पद को पाते हैं ,जैसे कि दीपक का आश्रय पाकर ही अँधेरे घर मे अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति की जा सकती है (श्लोक 779)

     हे  जिनवाणी माता ! तेरा यथाविधि मनन ,पठन ,समरण करने पर ऐसी कोई सम्पदा नही ,कोई गुण नही ,ऐसा कोई पद नही ,जिसको तु प्रदान न करती हो !अर्थात जिनवाणी के स्मरण से स्वर्ग ,मोक्ष पद की प्राप्ति होती है !(श्लोक 815)
      जिनवाणी के प्रत्याक्षादी प्रमाणों के द्वारा पदार्थों के जानने वाले ज्ञानी के ,नियम से मोह का समूह क्षय हो जाता है ! संसार मे हमारा उपकार करने वाली है तो जिनवाणी माता ही है ,माता अपने बच्चों को गलत मार्ग पर जाने से रोकती है ,उसी प्रकार जिनवाणी माता जीवन पथ पर दीपक बनकर मार्गदर्शन कराती है ,इस माता का किया हुआ उपकार कभी नही चुकाया जा सकता !
     सच्चे  पथ की खोज करनी है तो जिनवाणी को ह्रदय रुपी मंदिर मे विराजमान करके ,विनयपूर्वक मनन ,चिंतन करें! तभी सच्चा सुख मिलना संभव है !
जैसे माता पुत्र को कर देती बलवान ,
जिनवाणी जगमात है ,अमर करा दे ज्ञान !
  आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मति सागर जी "मुक्ति पथ की ओर " मे