मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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Thursday 31 January 2013

तीर्थंकर


 मित्रों जय जिनेन्द्र ....प्रणाम शुभ प्रात: !
तीर्थंकर का शाब्दिक अर्थ है तीर्थ का कर्ता अर्थात बनाने वाला ! तीर्थ शब्द का जैन परिभाषा के अनुसार अर्थ है –धर्म ! सँसार रूपी समुद्र से आत्मा को तिराने वाला एकमात्र अहिंसा व सत्य आदि धर्म ही है ,अत: धर्म को तीर्थ कहना शाब्दिक दृष्टि से उपयुक्त ही है ! तीर्थंकर अपने समय में सँसार सागर से पार करने वाले धर्म तीर्थ की स्थापना करते हैं अत: वे तीर्थंकर कहलाते हैं
धर्म का आचरण करने वाले  साधु ,साध्वी ,श्रावक (गृहस्थ पुरुष )व श्राविका (गृहस्थ स्त्री ) रूप चतुर्विध संघ को भी गौण रूप से तीर्थ कहा जाता है अत:चतुर्विध धर्म-संघ की स्थापना करने वालों को तीर्थंकर कहा गया है !
जैन धर्म की मान्यता है कि जब जब सँसार में दुराचार व पापाचार की भावना जोर पकड़ लेती है व धार्मिक भावना क्षीण हो जाती है .तब तब सँसार में तीर्थंकरों का अवतरण होता है और पहले स्वयं सँसार की मोह माया परित्याग कर त्याग और वैराग्य की अखंड साधना  में राम कर अनेकानेक कष्ट  उठाकर पहले स्वयं सत्य की परम ज्योति के दर्शन करते है (जैन दर्शन में इसे ही केवल ज्ञान कहा गया है ) और फिर मानव सँसार को उपदेश दे कर असत्य व पाप के चंगुल से छुडाते हैं ,सत्य के पथ पर लगाते हैं व सँसार में सुख शान्ति का साम्राज्य स्थापित करते हैं !
जैन धर्म एक बार मोक्ष हो जाने के बाद पुन:अवतार नहीं मानता ! अर्थात हर काल में जो चौबीस तीर्थंकर होते हैं वे अलग –अलग आत्मा होते हैं ,एक नहीं ! इन तीर्थंकरों के अलावा भी अन्य प्राणी अपने समूर्ण कर्मों का क्षय कर मोक्ष जाते हैं ,वे सामान्य रूप से अरिहंत कहलाते हैं ,विशेष रूप से तीर्थ की ,चतुर्विध संघ की स्थापना करने वाले अरिहंतों को तीर्थंकर कहा गया है !
जो आत्मा कर्म मल से मुक्त होकर मोक्ष में स्थान पा चुकी है वो सँसार में वापस कैसे आ सकती है ? अर्थात नहीं आ सकती !बीज तभी उत्पन्न हो सकता है जब तक कि वह  भुना नहीं है, निर्जीव नहीं हुआ है ,जब बीज एक बार भून गया तब उसमे अंकुर उत्पन्न नहीं हो सकता ! जन्म मरण के अंकुर का बीज कर्म है ,जब उसे तपश्चरण आदि धर्म - क्रियाओं से जला दिया  तब उसमे जन्म मरण का अंकुर कैसे फूटेगा ? अर्थात नहीं फुट सकता !  

Wednesday 30 January 2013

समुद्र एवं कुआँ


मित्रों जय जिनेन्द्र ....प्रणाम शुभ प्रात: !
समुद्र एवं कुआँ
समुद्र का पानी खारा होता है इसलिए किसी की प्यास नही बुझाता , कुआँ छोटा होता परन्तु सबको मीठा पानी देकर प्यास बुझाता है !
 इसलिये समुद्र की तरह गम्भीर बनो परन्तु खारे नही ,कुएँ  के पानी की तरह मीठे बनो ,समुद्र की तरह बड़े बनो ,कुएँ  की तरह छोटे नही !
आर्यिका आस्था श्री माताजी

Tuesday 29 January 2013

जीवन और आनन्द


मित्रों जय जिनेन्द्र ....प्रणाम शुभ प्रात: !
जीवन और आनन्द
जिस प्रकार एक फूटे हुए घड़े से बूंद बूंद करके जल निकलता रहता है और कुछ काल में घड़ा खाली हो जाता है ,प्राणी जीवन की भी यही स्थिति है , यही दशा है !
जीवन में यदि आप दान देते हैं , सेवा करते हैं ,अध्ययन करते हैं या और कोई भी सत्कर्म करते हैं तो उसमे आनन्द प्राप्त करने की कोशिश करें !आनन्द जब मिलेगा जब उसमे आपकी श्रद्धा होगी ,आपके मन में उस सत्कर्म के प्रति रस होगा ! जिसे आप गहरी दिलचस्पी कहते हैं वह रस ही तो है ! जब रस उमड़ पड़ेगा तो न विकल्पों का डर रहेगा न मन की चंचलता का ! तन आपका उस सत्कर्म में लग जायगा और मन उसके आनन्द में विभोर हो जाएगा !फिर न किसी प्रेरणा की अपेक्षा रहेंगी ,न उपदेश की ! बस अपने आप ही सब अपेक्षाएं पूरी होती चली जायेगी और जीवन में अपार आनन्द और  शान्ति की अनुभूति होनी प्रारंभ हो जायेगी !
एक साधु की वैय्यावृति करने में आनन्द पाने  वाले व्यक्ति को भीड़- भाड भरे वातावरण में मुनियों के आहार दान के समय शायद उतना आनन्द न आये जितना एक सडक पर निससहाय  बच्चे को दो बिस्कुट खिला कर आ जाए !
यदि कोई व्यक्ति धर्म  प्रभावना में अति आनन्द का अनुभव करता है तो पूजा पाठ उस व्यक्ति के लिए प्राथमिकता नहीं हो सकती ! यदि किसी को औरों के चेहरे पर मुस्कान ला कर अति आनन्द की अनुभूति होती है तो वह अनुभूति उसे किसी और कार्य में नहीं आ सकती !

Saturday 26 January 2013

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं !


मित्रों जय जिनेन्द्र ....प्रणाम शुभ प्रात: ! 

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं ! शायद औपचारिकता वश हम एक दुसरे को गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएं दे रहे हैं ,कहने को आज हम अपना गणतंत्र दिवस मना रहे हैं ,पर जरा सोचिये क्या मायने हैं इस गणतंत्र के ! सरे आम महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं ,दिगम्बर साधु तक ,जिनके पास तिनका मात्र भी परिग्रह नहीं , भी जिस धरती पर सुरक्षित नहीं रहे ,देश के वीर सिपाही जो सीमा पर शहीद हो जाएँ ,उनकी देश के प्रधानमन्त्री तक सुध ने लें ,देश का युवा वर्ग पढ़ लिखकर भी बेरोजगारी और बेकारी से जूझ रहा हो  ,देश के शासक ही  जिस देश के लोगों का खून चूस चूस कर अपनी तिजोरियां भर रहे हों ,देश के राजनेता और उद्योगपति अपने देश के धन को स्विस बैंकों में जाकर जमा कर रहे हों ,कैसा गणतंत्र और कैसी आजादी ! मगर फिर भी मै इस भारत माँ का बेटा हूँ, आओ मिलजुल कर एक नई दिशा में कदम बढ़ाएं ......एक नए भारत का निर्माण करें .........जय हिंद