मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Thursday 27 February 2014

सत्कर्म

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !

प्रत्येक सत्कर्म की पूर्ति के लिए जो भी तुम्हारे पास है ,हँसते मन से उसकी आहुति दे दो ! तुम्हारे अगल बगल आगे पीछे यह नही देखना है कि कोई इस दिशा में काम कर रहा है या नही !अच्छे और सच्चे मन से किया कोई भी प्रयास निष्फल नही होता ! आज नही तो कल ,कल नही तो अगले आने वाले कल को वह सफल होगा ही !


पथ नया

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !

अपने पथ का निर्माण स्वयं करो ! तुम नए तो तुम्हारा पथ भी नया ! पुरानी लकीरों पर चले तो क्या चले ? लकीर का फ़कीर अंधा होता है ! उसकी अपनी आँख नही होती ! वह दूसरों की आवाजों पर चलता है और दूसरों की आवाज कभी भी धोखा दे सकती है !

देह

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !
        
जिस देह को निज मानकर, नित रम रहा जिस देह में!
जिस देह को निज मानकर ,रच पच रहा जिस देह में!
जिस देह में अनुराग है ,एकत्व है जिस देह में!

क्षण एक सोचा क्या कभी ,क्या क्या भरा उस देह में!

Tuesday 18 February 2014

विधि का विधान

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !


व्यक्ति के अपने वश में कुछ भी नही ! जो कुछ भी होता है विधि के विधान से होता है ! जब होनहार भली हो तो विपत्ति भी संपत्ति बन जाती है और यदि होनहार अनुकूल न हो तो मित्र व सगे सम्बन्धी भी शत्रुवत व्यवहार करते दिखाई देते हैं !

Sunday 16 February 2014

पुण्य पाप का फल

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !

सभी जीव अपने किये हुए पुण्य पाप का फल ही भोगते हैं ! अन्य कोई किसी को सुखी दु:खी नही कर सकता ! यदि कोई अन्य किसी अन्य को सुखी दु:खी कर सकता तो अपने किये पुण्य पाप का क्या होगा ? अत: किसी के प्रति राग द्वेष करना व्यर्थ है !
तन कोई छूता नही चेतन निकल जाने के बाद !

फैंक देते फूल को खुशबु निकल जाने के बाद !

Thursday 13 February 2014

समाधि मरण भावना

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !

दिन रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊं,
देहांत के समय में, तुमको न भूल जाऊं ।टेक।
शत्रु अगर कोई हो, संतुष्ट उनको कर दूं,
समता का भाव धर कर, सबसे क्षमा कराऊं ।1
त्यागूं आहार पानी, औषध विचार अवसर,
टूटे नियम न कोई, दृढ़ता हृदय में लाऊं ।2
जागें नहीं कषाएं, नहीं वेदना सतावे,
तुमसे ही लौ लगी हो, दुर्ध्यान को भगाऊं ।3
आत्म स्वरूप अथवा, आराधना विचारन ,
अरहंत सिद्ध साधू, रटना यही लगाऊं ।4
धरमात्मा निकट हों, चर्चा धरम सुनावें,
वे सावधान रक्खें, गाफिल न होने पाऊं ।5
जीने की हो न वांछा, मरने की हो न इच्छा
परिवार मित्र जन से, मैं राग  को हटाऊं ।6
भोगे जो भोग पहिले, उनका न होवे सुमिरन,
मैं राज्य संपदा या, पद इंद्र का न चाहूं ।7
रत्नत्रय का पालन, हो अंत में समाधि,

शिवराज प्रार्थना यह, जीवन सफल बनाऊं ।8

Tuesday 11 February 2014

जीवन

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !

जितने कष्ट कंटकों में
जिसका जीवन सुमन खिला
गौरव गंध उन्हें उतना ही
यत्र तत्र सर्वत्र मिला

धन, सत्ता और प्रतिष्ठा

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार !
 शुभ प्रात: ! 

धन, सत्ता और प्रतिष्ठा मनुष्य
से न जाने कितने पाप झूठ,
 चोरी, हिंसा और अनाचार
कराते हैं !

Saturday 8 February 2014

भाग्य और पुरुषार्थ

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !


आज का किया हुआ पुरुषार्थ ही कल समय आने पर भाग्य में परिवर्तित होता है ! 

Monday 3 February 2014

अहिंसा और चरित्र

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !


ज्ञान के साथ ही करुणा का भाव होना भी अति आवश्यक है ! करुणा मानव को जीवन के उच्च स्तर पर आसीन करती  है क्योंकि वैचारिक क्रान्ति के बाद ही प्राणी में करुणा का जन्म होता है ! करुणा को अहिंसा का आधार भी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी ! अहिंसा को जीवन में उतारने के लिए व्यक्ति को चरित्र की महती आवश्यकता है ! चरित्र के अभाव में आज हमारा देश अनेक कठिनाइयों , अनैतिकता  और भ्रष्टाचार का शिकार हो रहा है ! 

Saturday 1 February 2014

हँसना

जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ  प्रात: !


उत्तम मानवों की आँखें हँसती हैं ! जब भी हँसने का प्रसंग आता है तो उनकी आँखों में ऐसी रोशनी चमकती है कि मानव का मन आनन्द से विभोर हो जाता है ! मध्यम मानव खिलखिलाकर हँसता है और अधम मानव अट्टहास करता है ! उसके ठहाके से दीवारें गूंजने लगती हैं ! इस प्रकार की हँसी असभ्यता और जंगलीपन की प्रतीक है !