जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार
! शुभ संध्या !
ज्ञान
का प्रवाह तो नदी के प्रवाह की तरह है ,उसे सुखाया नही जा सकता है ! इसी प्रकार
ज्ञान का नाश नही किया जा सकता है ,उसे स्व पर कल्याण की दिशा में प्रवाहित किया
जा सकता है! यही ज्ञानोपयोग है !
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