जय जिनेन्द्र मित्रों
,,,,,,,,नमस्कार ! शुभ संध्या !
धीमी धीमी पवन चल रही है
,चौराहे पर रखे प्रज्वलित दीपक को जब हाथ
की आड मिल जाए तो वह पूर्ववत अपनी शिखा को बनाए रखता है ! तूफानी समीर चल रही हो
,वायु अपने जोरों पर हो तो दीपक को कितना भी हाथ लगाया जाए ,वह दम तोड़ देता है !
ठीक इसी प्रकार कर्मों का उदय यदि मंद है ,उस स्थिति में भगवान की पूजा ,जप ,भक्ति
के माध्यम से कर्म की स्थिति का सामना हम कर सकते हैं ! परन्तु यदि कर्म का तीव्र
उदय हो तो कर्म का फल भोगना ही पड़ता है ,उस स्थिति में पूर्व का फल भोग वर्तमान
में प्रभु स्मरण से शुभ बंध किया जा सकता है ! आपति ,संकटों में प्रभु का नाम ही
एकमात्र सहारा है !
आर्यिका माँ स्वस्ति भुषण जी
“राग से वैराग्य की ओर” में
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