आचार्य समंतभद्र कहते हैं कि हम सबके चित्त में एक आठ फेन वाला भयंकर
विषधर बैठा है जो कूल ,जाति ,रूप ,ज्ञान ,धर्म, बल, वैभव, धन और ऐश्वर्य के अभिमान
से आत्मा को जड़ताक्रान्त कर रहा है ! इस पर अभिमान करना अज्ञान है ! ये सब आत्मा
के स्वभाव नहीं विभाव हैं ! इनके सहारे अपने आपको उठाने की कामना करना अज्ञान है ! इसका परिणाम सदैव
बुरा होता है !
जलधर नया नया आया
और ,
पवन के सहारे
जैसे आसमान पर चढ गया ,
पर ,
उसे बाहरी जगत का अनुभव ही कब था !
दुसरों के सहारे ऊँचा उठना
भय से खाली नहीं होता ,
इसे वह नहीं जानता था ,
पवन में अपना हाथ खींचा
और
जलधर नीचे आ गया !
सन्त कहते हैं कि पर के सहारे अपने आपको उठाना चाहोगे तो यही परिणति
होगी ! जीवन को यथार्थ ऊँचाई प्रदान करना चाह्ते
हो तो आत्मगुणों का विकास करो !
मुनिश्री 108 प्रमाण
सागर जी “धर्म जीवन का आधार” से संपादित अंश
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