अत्याचारी दमन चक्र के ,
सम्मुख गिरि सम अड़े रहो !
अंतिम रक्त बिन्दु तक अपने ,
सत्य पक्ष पर खड़े रहो !!
कोई रोती आँख मिले न ,
मिले न मुख की करूण पुकार !
हँसता खिलता हर जीवन हो ,
विश्व बने यह सुख आगार !!
जीवन है नदिया की धारा ,
जब चाहो मुड सकती है !
नरक लोक से स्वर्ग लोक से ,
जब चाहो जुड सकती है !!
अमर मुनि जी की "अमर क्षणिकाएं " से
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