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Saturday, 13 October 2012

गजुकुमार मुनि


गजुकुमार  मुनि
जब देवकी को मालूम हुआ कि उसके छ: पुत्र भी दीक्षा लेकर मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर हैं और श्रीकृष्ण व अन्य छ: पुत्रों के जीवित होते हुए भी उसे एक पुत्र के भी लालन पालन का अवसर न मिला देखें पोस्ट https://www.facebook.com/photo.php?fbid=364315073649960&set=a.135211416560328.35427.100002144103147&type=1&theater या http://www.teerthankar.blogspot.in/2012/10/blog-post.html
 तप कर्मों की विचित्रता का चिंतन करते हुए वह अपने महल में गयी व उसमे एक और पुत्र की लालसा प्रबल हुई ! श्रीकृष्ण ने  अपनी माता का यह वेदना देखकर हरिणगमेष देव की आराधना की व देव के वरदान से व कर्मों के संयोग से देवकी ने एक और पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम गजकुमार  पड़ा !
देवकी ने गजकुमार  का लालन पालन जी भार कर किया ! उसके लिए तो यह प्रथम व अंतिम रत्न था ! वह उसे पल भर के लिए भी नजरों से दूर नहीं करती थी ! पक्षिणी चाहे कैसे भी शावकों को अपने से लपेटे रहे परन्तु पंख आने पर पक्षी कब घोंसले  मे टिकते हैं ?
गजसुलुमाल युवा हुआ ! उसका दो कुमारियों के साथ विवाह किया गया ! एक द्रुम राजा की पुत्री प्रभावती व दूसरी सोमशर्मा ब्राहमण की पुत्री सोमा के साथ ! दोनों पत्नियों का प्रेम ,माता देवकी का पल पल का लाड दुलार और श्रीकृष्ण सरीखे भाई का गाढ़ स्नेह होने पर भी गजकुमार  का चित्त वैराग्य व संयम में ही था और वह गृहस्थ जीवन को बस कर्तव्य सा मान कर ही जिये जा रहा था !उसने अपना स्थान तो छ: ज्येष्ठ भाइयों की राह पर ही निश्चित किया हुआ था !
एक बार नेमिनाथ प्रभु सह्स्राम्वन में आये ! गजकुमार ने भगवान की दिव्य वाणी को सुना ! दिव्य देशना सुनकर गजकुमार के ह्रदय में विराजमान वैराग्य का अंकुर फुट गया और उसे घर में रहना अब अखरने लगा ! उसने माता देवकी व श्रीकृष्ण से गृह त्याग करने की आज्ञा मांगी !
आँखों से पल भर के लिए भी दूर न जाने देने वाले गजकुमार को वन् गमन की अनुमति देने में देवकी को अत्यन्त कठिनाई हुई परन्तु उनके दृढ़ निश्चय के आगे देवकी को झुकना पड़ा !गजसुकुमाल नेमी प्रभु के चरणों में जाकर दीक्षित हो गये !
संध्या का समय था ! सूर्यदेव क्षितिज में अस्त हो रहे थे ! नंगे बदन युवा मुनि गजकुमार कायोत्सर्ग ध्यान में शमशान में स्थित थे !जगत की नश्वरता व असारता को दर्शाने वाली ,धु-धु करके जलती हुई चिताएं उनके ध्यान को गति प्रदान कर रही थी ! क्रूर पक्षियों की आवाज उनके ह्रदय को दृढ़ कर रही थी !
सोमशर्मा ब्राह्मण को पता चला कि गजकुमार मुनि शमशान में ध्यानस्थ हैं तो गुस्से में फुफकारता हुआ वहाँ आया ,यह सोमशर्मा ब्राहमण उनका गृहस्थ अवस्था में ससुर था ! संयम की हठ थी और त्याग की भावना इतनी ही प्रबल थी तो इसे मेरी पुत्री से विवाह ही नहीं करना चाहिये था ,ऐसा क्षोभ उसके मन में था और पतिविहीन हुई स्त्री का क्या होगा ऐसा सोचे बगैर ये पाखंडी यहाँ तप करने के लिए आया है ,मै देखता हूँ इसका मोक्ष और मोक्ष जाने की अभिलाषा !
क्रोध की ज्वाला से धधकते हुए सोमशर्मा को शमशान के अंगारों ने और ज्यादा प्रज्वलित कर दिया ! उसने एक टूटे हुए मटके को उस मुनि के सिर से चिपका दिया उसमे वहाँ पड़े ठसाठस अंगारे भर दिये और बोला “इसे मोक्ष जाने की शीघ्रता है ,इसे मै अभी मोक्ष भेज देता हूँ ! मुनि की देह जलने लगी और साथ ही साथ कर्म भी जलने लगे ! मुनि ने विचार किया सच में सोमशर्मा मुझे मोक्ष पगड़ी पहना रहे हैं !अपना मन दृढ़ किया ,देह व आत्मा के अलग अलग स्वरुप पर विचार किया !कुछ दिन पहले किये हुए केश लोंच के कारण तुरंत ही अंगारों ने देह तप कर सिर से मांस व रक्त की धारायें प्रवाहित करनी शुरू कर दी ! मुनि गजकुमार ने सोमशर्मा पर क्षमा रुपी अमृत की वर्षा प्रवाहित करनी शुरू कर दी !उन्होंने अन्त:करण से सोमशर्मा का सत्कार किया और मन ही मन कहा सोमशर्मा तुम सच में मेरे उपकारी हो ! संयम की आराधना की दृढ़ता ऐसी परीक्षा के बिना थोड़े ही समझ में आती ? हे चेतन ! दृढ़ता रख ! गर्भावास के अनन्त बार के दुखों की अपेक्षा इस आग के एक समय के दुःख की क्या बिसात है ? मुनि ने मन को दृढ़ किया ! अंगारों ने देह को जला डाला !
मुनिराज ने अपार वेदना को शांत भाव से सहन किया ! शुक्ल ध्यान की धारा में अग्रसर होते हुए गजकुमार मुनि ने उस रात्रि को केवालज्ञान रुपी प्रकाश को प्राप्त किया व देह त्याग कर उनकी आत्मा मुक्ति धाम में जा बसी !
सुकोमल मुनि श्री के शरीर को आग की लपटों में जलते देख सोमशर्मा अत्यन्त हर्षित हुआ और “सुकोमल बालिका के जीवन में आग लगाने वाले तेरे लिए यही दण्ड उचित था” ऐसा कहता हुआ  नगर की ओर बढ़ गया !
दुसरे दिन जब श्रीकृष्ण नेमी परभी की धर्म सभा समवशरण में दर्शन के लिए पहुंचे तब अन्य मुनियों के दर्शन करने के उपरान्त गजकुमार मुनि को न पाकर श्रीकृष्ण ने नेमी प्रभु से पूछा तो प्रभु ने उन्हें मोक्ष जाने तक का सारा वर्तान्त कह सुनाया !
श्रीकृष्ण को सोमशर्मा पर अत्यन्त क्रोध आया लेकिन नेमी प्रभु ने उन्हें धैर्य धारण करने को कहा और कहा –‘गजकुमार को एक ही रात्रि में सिद्धि कराने वाले सोमशर्मा पर आप क्रोधित न हों !’श्रीकृष्ण का क्रोध शांत हुआ ! भगवान नेमी प्रभु की गृहस्थ की माता शिवदेवी ,श्रीकृष्ण के पुत्रों आदि अनेक यादवों ने जैनेश्वरी दीक्षा स्वीकार की और आत्म कल्याण की ओर चल पड़े ! गजकुमार  मुनि मरणांत उपसर्ग सहन कर अपनी आत्मसाधना के साथ साथ अन्य अनेक व्यक्तियों की साधना में निमित्त बने !
“उपदेशमाला से”

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