जय
जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार !
सँसार में चारों ओर विपत्तियों का जाल फैला हुआ है, एक विपत्ति से छुटकारा मिलता है तो दूसरी आज्ञाकारी नौकर की तरह तैयार खड़ी मिलती है ! यही नही कई बार तो अनेकों एक साथ आकर घेर लेती हैं !
सँसार में चारों ओर विपत्तियों का जाल फैला हुआ है, एक विपत्ति से छुटकारा मिलता है तो दूसरी आज्ञाकारी नौकर की तरह तैयार खड़ी मिलती है ! यही नही कई बार तो अनेकों एक साथ आकर घेर लेती हैं !
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