जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार
! शुभ संध्या !
धरती
से फूट रहा है ,
नवजात
है
और
पौधा ,
धरती
से पूछ रहा है
कि
यह
आसमान को कब छुएगा
छू
....सकेगा भी या नही ?
तुने
पकड़ा है ,
गोद
में ले रखा है इसे
छोड़
दे .........
इसका
विकास रुका है
ओ
! माँ .......
माँ
की मुस्कान बोलती है
भावना
फलीभूत हो बेटा ......
आस
पूरी हो
किन्तु
आसमान
को छूना आसान नही है
मेरे
अंदर उतरकर
जब
छुएगा
गहन
गहराईयाँ
तब
....कहीं... संभव हो ....
आसमान
को छूना
आसान
नही है !
आचार्य
श्री विद्यासागर जी “डुबो मत डुबकी लगाओ” में