जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों
और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात:
!
उत्तम मानवों की आँखें हँसती हैं !
जब भी हँसने का प्रसंग आता है तो उनकी आँखों में ऐसी रोशनी चमकती है कि मानव का मन
आनन्द से विभोर हो जाता है ! मध्यम मानव खिलखिलाकर हँसता है और अधम मानव अट्टहास
करता है ! उसके ठहाके से दीवारें गूंजने लगती हैं ! इस प्रकार की हँसी असभ्यता और
जंगलीपन की प्रतीक है !
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