जय
जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !
अपने पथ
का निर्माण स्वयं करो ! तुम नए तो तुम्हारा पथ भी नया ! पुरानी लकीरों पर चले तो
क्या चले ? लकीर का फ़कीर अंधा होता है ! उसकी अपनी आँख नही होती ! वह दूसरों की
आवाजों पर चलता है और दूसरों की आवाज कभी भी धोखा दे सकती है !
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