जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों
! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !
रखना है तो रख लीजिए फूलों को निगाहों में ,
खुशबु तो मुसाफिर है खो जायेगी राहों में !
सूरमे की तरह हालत ने पीसा मुझको ,
तब जाकर चढा हूँ मै लोगों की निगाहों में !
मुनिश्री 108 पुलकसागर जी की पुस्तक “सर्वस्व” से
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