मौत दबे पाँव आती है
आचार्य पुष्पदंत सागर जी की पुस्तक "आध्यात्म के सुमन "से
जिंदगी फिर भी सिहर जाती है
तुमको आदत है पर्याय बदलने की
मौत बदनाम हुई जाती है!
दबे पाँव मौत आती है ,आने दो
आहट मिल जाये मन मत घबराने दो
निश्चित ही मृत्यु से जीवन का अन्त नहीं ,
निश्चित ही मृत्यु से जीवन का अन्त नहीं ,
प्राण मुखर होते हें देह बदल जाने दो !
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