मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Monday, 13 May 2013

प्रयास और प्रकाश


जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या !


प्रयास के बिना प्रकाश नहीं हो सकता और जीवन का विकास नहीं हो सकता !
मुनिश्री 108 प्रकर्ष सागर जी महाराज

नरम


जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या !
नरम
नरम – कलाई
नरम कंगना
नरम के भ्रम में
खोना अपना
छोड़ भ्रम का सपना
भ्रमर - जाल
घने - बाल
उन्हें देख
बदल न चाल
बच उनसे बाल - बाल
जो जीवन में डाले अंतराल
बिगड चूका तेरा हाल
सुन ! सामने खड़ा
कराल – काल
दिखा नए कमाल
रख स्वयं का ख्याल
रूप लावण्य में
अब तु   न-रम न-रम – तु – न - रम  
आचार्य श्री  108  पुष्पदंत सागर जी “शब्दांकन”में

Sunday, 12 May 2013

रसना


रसना 

ओ मेरी रसना !
स्वाद भोग का
चख ना
व्यर्थ नर्म गर्म में
फंस न
भोगों से स्वयं को
डस न
नहीं तो तुझे बरसों पड़ेगा
सडना
गलना
मरना
छोड़ तु अपना
विषयों में अडना
ओ मेरी रसना
भोगों में किंचित
रस ना  - रस  -  ना   -  रस  ना ......
आचार्य श्री  108  पुष्पदंत सागर जी “शब्दांकन”में

ज्ञान मंगलम महोत्सव के तीसरे दिन

जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ मध्यान्ह !
रहम से रहित जीवन नरक के समान है ! विद्या , धन एवं शक्ति का अहम व्यक्ति को वहम पैदा करता है और उसके जीवन से रहम की समाप्ति हो जाती है ! ये उद्बोधन मुनिश्री 108 प्रकर्ष सागर जी महाराज ने आज प्रात: ज्ञान मंगलम महोत्सव के तीसरे  दिन प्रकट किये ! कल दिनांक प्रात: 13.05.2013 को मुनिश्री के सानिध्य में अक्षय तृतीया महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा !
हर किसी की बात पे यकीं न किजिये
क्या है राज रहम का ये जान लीजिए ...
मुसीबतों से घिर रहा है आज आसमां
हिंसा से बुझ रही है आज प्रेम की शमा
देखते ही देखते कितना वक्त है गुजर गया
रह गया है चार दिन जिन्दगी का कारवां
हो सके तो रोशनी को यूँ जलाइये
बनके अहिंसा दया प्रेम ,की गंगा बहाइये
क्या है राज रहम का ये जान लीजिए...
दूषित हुए हैं मन सभी के आज देख लो
दिलों के बीच भेद की दीवार है खड़ी
दीर्घ स्वरों में देख कर मानवता रो पड़ी
रहम रोशनी से वंचित हुआ है ये समां
मानव को मानव के गले मिलाइए
क्या है राज रहम का ये जान लीजिए .....



Saturday, 11 May 2013

ज्ञान मंगलम महोत्सव


जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या  !
ज्ञान प्राप्त करके ,शास्त्रों का पठन करके ,मुनियों व ज्ञानीजनों के प्रवचन श्रवण करके अनुभव में उतारने से आत्म में आत्मा का दर्शन करके स्वयं का मुखिया बनना ही सुखिया बनने का, सुखी जीवन जीने का रहस्य है ! ये उद्बोधन मुनिश्री 108 प्रकर्ष सागर जी महाराज ने आज प्रात: ज्ञान मंगलम महोत्सव के दुसरे दिन प्रकट किये !
ज्ञान बिना नर सूना लागे रे ..........
दिन सूना है बिन दिनकर के
चाँद बिना रैना सूनी लागे रे .....
 ज्ञान बिना नर सूना लागे रे ..........
मंदिर सुना बिन भगवन के
भाव बिना ह्रदय सूना लागे रे ......
ज्ञान बिना नर सूना लागे रे ..........
जीवन सूना बिन तीर्थ के
मधुर भाषण बिना मुख सूना लागे रे ....
ज्ञान बिना नर सूना लागे रे ..........
मुनिश्री 108 प्रकर्ष सागर जी महाराज