रसना
ओ मेरी रसना !
स्वाद भोग का
चख ना
व्यर्थ नर्म गर्म में
फंस न
भोगों से स्वयं को
डस न
नहीं तो तुझे बरसों
पड़ेगा
सडना
गलना
मरना
छोड़ तु अपना
विषयों में अडना
ओ मेरी रसना
भोगों में किंचित
रस ना - रस
- ना -
रस ना ......
आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी “शब्दांकन”में
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