जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ मध्यान्ह !
रहम से रहित जीवन नरक
के समान है ! विद्या , धन एवं शक्ति का अहम व्यक्ति को वहम पैदा करता है और उसके
जीवन से रहम की समाप्ति हो जाती है ! ये उद्बोधन मुनिश्री 108 प्रकर्ष सागर जी महाराज ने आज प्रात: ज्ञान
मंगलम महोत्सव के तीसरे दिन प्रकट किये !
कल दिनांक प्रात: 13.05.2013 को मुनिश्री के सानिध्य में
अक्षय तृतीया महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा !
हर किसी की बात पे
यकीं न किजिये
क्या है राज रहम का
ये जान लीजिए ...
मुसीबतों से घिर रहा
है आज आसमां
हिंसा से बुझ रही है
आज प्रेम की शमा
देखते ही देखते कितना
वक्त है गुजर गया
रह गया है चार दिन
जिन्दगी का कारवां
हो सके तो रोशनी को
यूँ जलाइये
बनके अहिंसा दया
प्रेम ,की गंगा बहाइये
क्या है राज रहम का
ये जान लीजिए...
दूषित हुए हैं मन सभी
के आज देख लो
दिलों के बीच भेद की
दीवार है खड़ी
दीर्घ स्वरों में देख
कर मानवता रो पड़ी
रहम रोशनी से वंचित
हुआ है ये समां
मानव को मानव के गले
मिलाइए
क्या है राज रहम का
ये जान लीजिए .....
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