जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !
जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!
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कोई कापीराइट नहीं ..........
Sunday, 5 May 2013
धर्म का सच्चा स्वरूप
जयजिनेन्द्र
बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !
सदाचार, आचरण की
शुद्धता और विचारों की स्वच्छता तथा चारित्रिक आदर्श से मनोवृत्तियों का विकास इन
सभी नैतिक सूत्रों की आधार भूमि है अहिंसा। यही धर्म का सच्चा स्वरूप भी है।
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