जय जिनेन्द्र बंधुओं !
प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या !
नरम
नरम – कलाई
नरम कंगना
नरम के भ्रम में
खोना अपना
छोड़ भ्रम का सपना
भ्रमर - जाल
घने - बाल
उन्हें देख
बदल न चाल
बच उनसे बाल - बाल
जो जीवन में डाले
अंतराल
बिगड चूका तेरा हाल
सुन ! सामने खड़ा
कराल – काल
दिखा नए कमाल
रख स्वयं का ख्याल
रूप लावण्य में
अब तु न-रम न-रम – तु – न - रम
आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी “शब्दांकन”में
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