जय जिनेन्द्र बंधुओं
! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या
तन और मन को तप की आग में
तपा – तपाकर ,
जला – जलाकर राख करना
होगा !
तभी कहीं चेतन आत्मा खरा उतरेगा ,
क्योंकि राख शब्द ही
विलोम रूप से कह रहा !
राख बने बिना खरा दर्शन
कहाँ ?
रा ख .......ख रा
..........
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज “मूक माटी” में
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