जय
जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार !शुभ संध्या !
सुख के बिंदु से ,उब गया था यह
दुःख के सिन्धु में डूब गया था
यह
कभी हार से सम्मान हुआ इसका
कभी हार से अपमान हुआ इसका
कहीं कुछ मिलने का लाभ मिला इसे
कहीं कुछ मिटने का क्षोभ मिला
इसे
कहीं सगा मिला , कहीं दगा
भटकता रहा अभागा यह
परन्तु आज
यह सब वैषम्य
मिट से गए हैं
जब से मिला यह
मेरा संगी संगीत है
स्वस्थ जंगी जीत है
आचार्य
श्री 108 विद्यासागर जी महा मुनिराज “मूक माटी” में
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