मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Monday 23 April 2012

उतने पाँव पसारिये जितनी लंबी सोड

व्यक्ति के पास बहुत धन है ! यदि नया धन न आये तो एक दिन वह संचित धन समाप्त हो जाएगा ! नदी मे पानी है ! यदि जल का नया प्रवाह न आए तो नदी एक दिन सुख जाए ! व्यक्ति के पास कितना ही धन व पदार्थ हो ,यदि उसका संवर्धन न हो ,उसका व्यय होता रहे तो वह समाप्त होता चला जाता है ! एक दिन ऐसा आता है कि संपन्न व्यक्ति भी कंगाल हो जाता है !
एक भिखारी सेठ के पास गया ! सेठ भिखारी की दशा देख कर द्रवित हो गया ! उसने जेब मे हाथ डाला , सौ रुपये निकाले और भिखारी को दे दिये ! 
भिखारी ने कहा -सेठ साहब ! भविष्य मे ध्यान रखना ! इतना किसी को मत देना ! 
सेठ  यह सुन कर स्तब्ध रह गया ! सेठ ने सोचा -यह कैसा भिखारी है ? मांगने वाला तो यही चाहता है कि सौ के स्थान पर दो सौ रुपए मिल जाएँ ! यह उलटी बात कर रहा है !
सेठ ने पूछा -भाई ! तुम ऐसा क्यों कह रहे हो ? 
भिखारी ने कहा -सेठ साहब ! मै भी एक दिन तुम्हारे जैसा सेठ था !जो भी मांगने आता ,उदारता से रुपए दे देता ! कोई सौ मांगता ,मै दो सौ दे देता ! इस प्रकार देते देते यह स्थिति बन गई है कि मै आज खुद भिखारी बन गया हूँ ! इसीलिए तुम ध्यान रखना ,इस प्रकार मत देना ,जिससे तुम्हे पश्चाताप करना पड़े ,भिखारी बनने को विवश होना पड़े !
 जहाँ केवल व्यय होता है ,अथवा आय से अधिक व्यय होता है ,वहाँ खजाना लूट जाता है ! धन और पदार्थ का सच यही है !
विद्या ही एक ऐसी वस्तु है जिसका कभी व्यय नही होता ,जितना ज्ञान बांटोगे ,उतना ही ज्ञान बढ़ेगा !
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी की पुस्तक "अंतस्तल का स्पर्श " से







 

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