मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Monday, 12 November 2012

अपराध भावना


जरा  सोचिये ......चिन्तन कीजिये .......

जिसके हृदय में अपराध भावना होती है ,उसकी आँख नीची हुए बिना नहीं रहती ! भरत की आँखें दृष्टि युद्ध में इसलिए नहीं झुकी कि वो कमजोर थी ;क्योंकि चक्रवर्ती की आँख तो सबसे शक्तिशाली होती हैं ,शक्ति –संपन्न होती हैं ,अपितु  इसीलिए नीची हुई कि उनके मन में यह अपराध भावना काम कर रही थी कि मै उनसे वह भूमि छीनना चाहता हूँ ,जो उन्हें पिताश्री ऋषभदेव ने दी थी !

No comments:

Post a Comment