जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ संध्या !
जिनके अंदर धर्म की
प्राप्ति हो जाती है , आनन्द की उपलब्धि हो जाती है ,प्रेम आंदोलित हो जाता है ,वे
स्वयं के मार्ग के दीप बन जाते हैं तथा दूसरों के मार्ग के दीप बनने की उनकी स्वयं
की कोई इच्छा नहीं होती ,फिर भी दूसरों का मार्ग प्रकाशित अवश्य ही करते हैं !
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