जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !
जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!
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कोई कापीराइट नहीं ..........
Tuesday, 2 April 2013
सुख दुःख
जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार
वस्तु स्वरूप के अनुसार जब कोई किसी के सुख दुःख
का भागीदार बन ही नहीं सकता तब “अमुक मेरा साथ नहीं देता” ऐसी शिकायत को अवकाश
कहाँ ? जब हम यह सोचते हैं कि कोई मेरा सहयोगी बन ही नहीं सकता तो सहज ही पर
पदार्थों से उपेक्षा हो जायेगी ! इस भावना से जीव को प्रियजनों मे प्रीति का
अनुबंध नहीं होता और पर जनों मे द्वेष का भाव नहीं होता ! सहज ही तटस्थता का भाव
उदित होता है जो सुखकारी है ,तत्काल आनन्ददायक है !
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