जय
जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !
सभी
जीव अपने किये हुए पुण्य पाप का फल ही भोगते हैं ! अन्य कोई किसी को सुखी दु:खी
नही कर सकता ! यदि कोई अन्य किसी अन्य को सुखी दु:खी कर सकता तो अपने किये पुण्य
पाप का क्या होगा ? अत: किसी के प्रति राग द्वेष करना व्यर्थ है !
तन
कोई छूता नही चेतन निकल जाने के बाद !
फैंक
देते फूल को खुशबु निकल जाने के बाद !
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