जय
जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !
दिन
रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊं,
देहांत
के समय में, तुमको न भूल जाऊं ।टेक।
शत्रु
अगर कोई हो, संतुष्ट उनको कर दूं,
समता
का भाव धर कर, सबसे क्षमा कराऊं ।1।
त्यागूं
आहार पानी, औषध विचार अवसर,
टूटे
नियम न कोई, दृढ़ता हृदय में लाऊं ।2।
जागें
नहीं कषाएं, नहीं वेदना सतावे,
तुमसे
ही लौ लगी हो, दुर्ध्यान को भगाऊं ।3।
आत्म
स्वरूप अथवा, आराधना विचारन ,
अरहंत
सिद्ध साधू, रटना यही लगाऊं ।4।
धरमात्मा
निकट हों, चर्चा धरम सुनावें,
वे
सावधान रक्खें, गाफिल न होने पाऊं ।5।
जीने
की हो न वांछा, मरने की हो न इच्छा
परिवार
मित्र जन से, मैं राग को हटाऊं ।6।
भोगे
जो भोग पहिले, उनका न होवे सुमिरन,
मैं
राज्य संपदा या, पद इंद्र का न चाहूं ।7।
रत्नत्रय
का पालन, हो अंत में समाधि,
‘शिवराज ’ प्रार्थना यह, जीवन
सफल बनाऊं ।8।
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