जय
जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात: !
प्रत्येक
सत्कर्म की पूर्ति के लिए जो भी तुम्हारे पास है ,हँसते मन से उसकी आहुति दे दो !
तुम्हारे अगल बगल आगे पीछे यह नही देखना है कि कोई इस दिशा में काम कर रहा है या
नही !अच्छे और सच्चे मन से किया कोई भी प्रयास निष्फल नही होता ! आज नही तो कल ,कल
नही तो अगले आने वाले कल को वह सफल होगा ही !
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