राग द्वेष दोनों का नाम ही सँसार है और सँसार कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है ! कोई अलग अलग
चीज नहीं है हमसे हमारे भीतर ही है वो ! जितना राग द्वेष है उतना सँसार हमने अपने
हाथों से निर्मित कर लिया है और जितना हम कम करते चले जायेंगे उतना हमारा सँसार कम
होता चला जाएगा ! अगर ऐसी हमारी दृष्टि बन जाए तो आत्म कल्याण हो जाए ! सारी
दुनिया को संतुष्ट करना है तो आज तक कोई नहीं कर पाया ! भगवान भी नहीं हो पाए ऐसे
कि सबको संतुष्ट कर पायें हों अपने जीवन से, अपने जीवन में ही !
हम अपने जीवन को संयमित करें और नियंत्रित कर लें ,ध्यान रहे बस
दृष्टि की निर्मलता पर और प्रक्रिया हो आत्म नियंत्रण की ! हम अपने जीवन को कई वजह
से अनुशासित और नियंत्रित कर लेते हैं !चार लोगों में यश और ख्याति पाने के लिए भी
,कि जिससे वाहवाही हो ,कितने उपवास करे इन्होने ,कितनी साधना है इनकी ,कितनी
तपस्या है इनकी ऐसी ख्याति पूजा के लिए भी हम कई बार अपने जीवन को नियंत्रित कर
लेते हैं ,लेकिन दृष्टि की निर्मलता के साथ जो नियंत्रण है वही सही मायने में आत्म
नियंत्रण है !
मुनिश्री 108 क्षमा सागर जी की पुस्तक “कर्म कैसे करें” से सम्पादित अंश
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