एक छोटा सा बच्चा साधु बाबा के पास पहुंचा और पूछा कि महाराज इस सँसार
में जो बंधन है कैसे है और हम उस से कैसे मुक्त हो सकते हैं तो उन्होंने कहा ,ठहरो
तुम हमारे पास रहो हम बता देगें ! जाओ पहले तुम हमारा ये एक काम करो कि जो सामने
एक पेड लगा है इसका जितना बिगाड़ तुम कर सको करो ,जितनी तकलीफ दे सको उसे दो ,फुल
पत्ते फल जो कुछ भी है तहस नहस कर दो ! उसने सोचा ये कैसा काम है ? फिर भी साधु की
आज्ञा थी जितना बिगाड़ बन सका किया और वापस आ गया ! साधु ने पूछा –कैसा लग रहा है !
अच्छा नहीं लग रहा ! मन बहुत भारी भारी सा है ! साधु ने कहा –सो जाओ जाकर ! सुबह
उठा ,ठीक से नींद भी नहीं आई ! यही लगता रहा ऐसा कौन सा काम मैंने कर लिया ,जिससे
मन इतना भारी है ! गुरूजी ने पूछा -रात को नींद आई ? बिलकुल नहीं आई ! बहुत दुःख
होता रहा ! आपने ऐसा काम मुझे करने को क्यों कहा ?
अरे तो जाओ जाकर के उससे क्षमा मांगो और कहो कि मैंने जो तुम्हारा
बिगाड़ किया था वो मुझसे गलती हो गयी और जरा उसकी जड़ों में पानी डालो पाटों को
धो डालो ,उधर जो कचरा फैला है उसे साफ़ करो
! लग गया वो काम में, पानी सींचा साफ़ सफाई की ! बड़ा मन गदगद हो गया ! शाम को लौटा
तो गुरु ने पूछा –कैसा लगा ? बहुत अच्छा लग रहा है बहुत आनन्द आ रहा है ,कल तो मन
बिलकुल शांत नहीं था ,लेकिन आज मैंने वृक्ष से अच्छा व्यवहार किया तो मुझे लगा की
कल के कर्म के लिए वृक्ष ने मुझे माफ कर
दिया होगा ! कल के कर्म से ,मै जैसे आज का कर्म करके मुक्त हो गया हूँ ! कल के
मेरे अपराध से आज मुझे मुक्ति सी मिल गयी है !
बस यही है उपाय अपने बंधन और मुक्ति का !
मुनिश्री 108 क्षमा सागर जी की पुस्तक “कर्म कैसे करें” से सम्पादित अंश
dhanyaaad
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