एक पिता ने अपने तीन पुत्रों को कुछ बीज सौंपकर के तीर्थ यात्रा की
तैयारी की ! तीनों को बीज सौंप दिये थे और कहा कि मै आऊंगा तो लौटकर के वापिस ले
लूँगा ! परीक्षा करना चाह्ते थे कि उत्तराधिकारी किसे बनाएँ ,इस बात के लिए
चिन्तित थे और देखना चाह्ते थे कि तीनो बेटों में सबसे योग्य कौन है ! कुछ समय के
बाद वापिस लौटे तो तीनो बेटो को पास बुलाया ,पहले वाले ने कहा कि आपके लौटने के
इन्तजार में तो वे बीज खराब हो जाते इसीलिए मैंने बाजार में बेच दिये ! आप अभी
कहें थोड़ी देर में बाजार से खरीदकर वापस ला कर दे देता हूँ ! लेकिन पिता ने कहा वो
बीज तो मेरे दिये हुए नहीं होंगे ,वो तो दुसरे ही बीज होंगे ! दूसरा बेटा बड़ा खुश
था क्योंकि उसने दिये हुए बीज पेटी में संभालकर रखे थे ,उसे शायद लगा था कि पिताजी
बहुत खुश होंगे उसके बीजों को देखकर ! पेटी खोली तो पाया कि सब बीज सड चुके थे ,खराब
हो चुके थे ,लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था ! तीसरे बेटे से पूछने पर उसने कहा कि
पिताजी सब बीज रखे हुए हैं और सुरक्षित भी हैं और ले गया पिताजी को पीछे जो थोड़ी
सी जमीन थी घर के हिस्से में ! उसने वो बीज जमीन में बो दिये थे और जिनसे कि पौधे
उग आये थे और एक एक पौधे में कई कई बीज भी ! उसने कहा कि पिताजी ये बीज ज्यों के
त्यों वही तो नहीं हैं लेकिन उन्ही की सन्तान हैं ! पिता के लिए अब योग्य पुत्र का चुनाव करना कुछ
मुश्किल नहीं रहा था !
अपने जीवन में झाँक कर देखें तो देखना पड़ेगा कि जो जीवन ले कर आये थे
कहीं कौडियों के दाम बेच तो नहीं दिया हमने ! और कहीं भोग विलास में बिता कर
,लगाकर सड़ने के लिए मजबूर तो नहीं कर दिया हमने इस जीवन को ! क्या सचमुच हमने उसे
अपने भावनाओं की निर्मलता की जमीन में ,दृष्टि की निर्मलता की जमीन में बोकर के
पौधे अंकुरित किये हैं दया व करुणा के ,वात्सल्य व स्नेह के ! जिससे कि मेरे जीवन से सब को लाभ मिले!
ये बीज सबके लिए सुगन्ध फैलाए इसके लिए उसने थोड़ी सी जमीन में उसे बो
दिया था और अपना कुछ बिगड़ा भी नहीं ,ज्यों के त्यों बने रहे ! क्या जीवन को इस
दृष्टि से नहीं जिया जा सकता ? इस दृष्टि से अपने जीवन को कोई जीता है तो वह यहाँ
भी देवत्व के साथ जी रहा है ,आगे भी वो अपने जीवन को उसी ऊँचाई पर ले जाएगा जहाँ
तक महापुरुष पहुंचे हैं !
मुनिश्री 108 क्षमा सागर जी की पुस्तक “कर्म कैसे करें” से सम्पादित अंश
KshamaSagar Maharaj Ji ko Namostu
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