एक साधु नाव पर यात्रा कर रहे थे |नाव पर कुछ युवक भी सवार थे |युवकों
को मजाक सूझा |उन्होंने साधू महाराज की हँसी उड़ाना शुरू कर दी |साधू सच्चे साधु थे
|उन्होंने अपनी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं की |युवकों ने साधु की समता को उनकी
कमजोरी समझा |वे एकदम उद्दण्डता पर उत्तर आये|पर साधु महाराज पूर्णत: अविचलित रहे
|
सन्त कहते हैं-साधुओं का
स्वभाव चन्दन की भान्ति होता है जो जलाये जाने पर भी सुगन्ध प्रदान करता है| एक
युवक ने साधु महाराज को नदी में ढकेलना चाहा कि तभी जल देवता प्रकट हो गये |जल
देवता ने साधु महाराज से निवेदन करते हुए कहा –“महाराज ! इन दुष्टों ने आपके साथ
दुर्व्यवहार किया है ,मै अभी नाव पलट कर इनको सबक सिखाता हूँ ! सन्त ने तुरंत देवता को
रोकते हुए कहा –नहीं नहीं ,ऐसा मत करो ,नाव पलटने से क्या होगा ? पलटना ही है तो
इनकी बुद्धि पलट दो !
सन्त कि वाणी सुनकर सारे युवक पानी –पानी हो गये ! सभी उनके चरणों में
गिरकर क्षमा मांगने लगे ! घमण्ड में चूर होकर जिन्होंने तुम्हे हानि पहुंचाई है
,तुम उन्हें अपने क्षमा व्यवहार से जीत लो !
मुनिश्री 108 प्रमाण
सागर जी “धर्म जीवन का आधार” से संपादित अंश
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