एक मशहूर चोर था ! नाम था विद्युत ! उसके पिता ने अपने जीवन काल में
अपने पुत्र को यही शिक्षा दी थी कि भूल कर भी उस रास्ते से मत जाना जहाँ पर महावीर
प्रभु का समवशरण विहार कर रहा हो ! ध्यान रखना ,वहाँ से गुजरे तो तुम्हारी चोरी
चकारी सब छूट जायेगी ! ध्यान रखना अगर उनका उपदेश अगर तुम्हारे कानों में पड़ गया
तो फिर तुम्हारा सब कुछ छूट जाएगा !
एक बार ऐसा मौका आया ,चोरी करके भाग रहा था ,पीछे पीछे कुछ दूर राजा
श्रेणिक के सिपाही लगे हुए थे ,जहाँ रास्ता मिला वह भाग लिया ,रास्ते में वीर
प्रभु का समवशरण विहार कर रहा था ,वीर प्रभु की दिव्य ध्वनि खिर रही थी ! पिता के
कहे अनुसार उसने कानों में उँगलियाँ डाल ली लेकिन हुआ ये कि उसके पाँव में उसी समय
काँटा लग गया और काँटा निकालने के लिए जो उसने कान से हाथ हटाया तो उसके कानों में
दो शब्द पड़ गये कि देवों देवियों की पलकें नहीं झपकती और परछाई नहीं पड़ती !
संयोग से राजा श्रेणिक के पुत्र व मंत्री अभयकुमार द्वारा वह पकड़ा गया
! अभयकुमार को मालूम था कि बड़ा शातिर चोर है इसीलिए उसने उसे बेहोश करवा दिया और
ऐसा दृश्य उपस्थित किया कि जैसे स्वर्ग का ही दृश्य हो ! सुन्दर नृत्यांगनाएं और
देव देवियों जैसे वस्त्र धारण किये हुए लोग दिखाए और कुछ देर बाद उसकी मूर्छा हटी
तो उसे कहा गया कि हे देव आप स्वर्ग लोक में हैं और आप अपने जीवन के बारे में
बताएं ,आपने अपने जीवन में क्या क्या कार्य किये ! एक बार को उसे लगा जैसे वो सच
में ही स्वर्ग लोक में आ गया हो ! लेकिन फिर उसे वीर प्रभु की वाणी में सुनी वह
बात याद आ गयी कि देवताओं के परछाई नहीं होती व उनकी पलके नहीं झपकती ! तत्काल वह
समझ गया कि यह सब राजा का किया हुआ प्रपंच है जो मुझे दोषी साबित करने के लिए रचा
गया है ! उसने कुछ नहीं बताया और साक्ष्य के अभाव में अभयकुमार ने उसे बरी कर दिया
और कहा कि देर सबेर मै तुम्हे रंगे हाथों पकड़ ही लूँगा ,लेकिन मुझे अचरज है कि तुम
यह सब कैसे पहचान गये और कैसे बच गये !
तब वह चोर अभयकुमार के चरणों में गिर गया और कहा कि पूछते हो तो बता
रहा हूँ कि मुझे किसी और ने नहीं बचाया ,मुझे तो महावीर प्रभु की यानि कि
जिनेन्द्र भगवान की दिव्य वाणी ने ही बचा लिया ! जिनेन्द्र प्रभु की वाणी के दो
शब्दों ने ही मुझे इस विपत्ति से बचा लिया तब अगर मै उनके पूरे धर्म को श्रवण करूँ
तो मै सँसार के हर दुःख से ,हर विपत्ति से बच ही जाऊँगा !
धरम श्रवण ही हमारे जीवन को नई ऊँचाई दे सकता है ,अगर एक वाक्य को भी
आत्मसात कर लिया जाय !
मुनिश्री 108 क्षमा सागर जी की पुस्तक “कर्म कैसे करें” से सम्पादित अंश
bahut hi badiyaa.. Aapka dhanyawaad yaha share karne ke liye
ReplyDeletethanks shrish ji
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