“ कलह छोड क्षमा को धार ”
तीन दिन का भूखा भिखारी नगर सेठ की हवेली के द्वार पर गया |
उसने भिक्षा के लिय पुकार लगायी | सेठानी ने भिखारी को देखा और कहा –“आगे
जाओ,यहाँ कुछ नही है |”भिखारी ने कातर स्वर मे कहा-“माता जी,तीन दिन का भूखा हूँ,
कुछ तो दे दीजिए |” भिखारी को दुत्कारते
हुए सेठानी ने कहा – “यहाँ से जाते हो की नहीं, सुबह-सुबह दिन खराब करने के लिए आ
गये”| भिखारी भी ऐसा- वैसा नहीं था |
उसने अत्यंत दीनतापूर्वक प्रार्थना की और कहा-“माता जी, एक रोटी ही दे
दो,बड़ी कृपया होगी |”सेठानी तमतमा गयी | उसने भिखारी को रोटी देने की जगह पास पड़ा
फर्श पोंछने का पोतना उठाया और उस भिखारी पर दे मारा |
भिखारी ने सहज
भाव से उसे उठा लिया | भगवान् को धन्यवाद देते हुए उसने कहा –चलो कुछ तो मिला |
साँझ ढलने पर भगवान् के मन्दिर मे गया | उस पोतने की एक बाती बनायी और भगवान् के
सामने जलाकर उसने भगवान् से प्रार्थना करते हुए कहा –“हे प्रभो !इस दीपक की तरह उस
सेठानी के ह्रदय को भी प्रकाश से भर दे |”
भिखारी की यह भावना
उसके अन्तरंग मे विराजित उत्तमक्षमा की अभिव्यक्ति है
क्षमा आत्मा का स्वभाव है
सहिष्णुता,समता और सौजन्य क्षमा की पर्याये है |क्षमा शब्द की निष्पत्ति संस्कृत
के ‘क्षमु’धातु से हुई है |यह सामर्थ्य और क्षमता के अर्थ मे प्रयुक्त है
|सामर्थ्य और क्षमता सम्पत्र व्यक्ति ही क्षमा धार सकता है |क्षमा का एक अर्थ धरती
और वृक्ष भी है |धरती सारी दुनियाँ के भार को सहती है| सबके पदाघात को सहन करती है
|किसी का कोई प्रतिकार नहीं करती है | यह धरती की महानता है| इसी कारण इसे क्षमा
कहा जाता है वृक्ष शीत,गर्मी और वर्षा की बाधाओं को प्रतिकार रहित सहन करते है तब
उनमे मीठे फल लगते है |वृक्ष पर पत्थर मारने पर भी वह मीठे फल देता है |यही उसकी
महानता है |धरती और वृक्ष की भान्ति सहिष्णु ही क्षमा जैसे गुण को धारण कर सकते है
|क्षमा धारण करना विशिष्ट क्षमातावान् महान् आत्माओं के ही वश की बात है |
मुनिश्री 108 प्रमाण सागर जी “धर्म जीवन का आधार” से
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