गरज कर बरसना
यूनान
के प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात को उनकी पत्नी बहुत परेशान करती थी !एक बार
सुकरात पढ़ रहे थे तो उनकी पत्नी ने उन्हें बहुत परेशान किया तो वह घर की दहलीज पर
आकर बैठ गये और वहीँ अपनी पुस्तक खोल कर
पढ़ने लगे !
इससे उनकी पत्नी और चिढ गई और एक लौटे में
पानी लेकर आई व सुकरात के सिर पर उंडेल दिया ! इससे रास्ते चलते लोग वहाँ जमा हो
गये और सुकरात को देख कर हँसने लगे !
तभी पत्नी की ओर देख कर अंदाज से
मुस्कुराते हुए सुकरात ने कहा –मुझे मालूम है ,पहले बादल गरजते हैं उसके बाद ही
पानी बरसता है !
ज्ञानी
का ह्रदय क्षीरसागर के समान शांत व मधुरता से परिपूर्ण होता
है !क्षीर सागर स्वयं मधुर व शांत होता है
व उसमे अंगारे डालने वालों को भी शीतल लहरों से शान्ति प्रदान करता है !
भगवान महावीर ने कहा है कि सत्पुरुष ज्ञानी
पृथ्वी के समान होते हैं ,वे पीटे जाने पर भी क्रोध नहीं करते !
महर्षि तिरुवल्लुर ने कहा है –“यह धरती उसे
भी आश्रय देती है जो उसका ह्रदय विदीर्ण कर गड्ढा खोदता है इसीलिए कटु वचन कहने
वाले को भी क्षमा कर देना चाहिए !क्षमा ही मनुष्य का श्रेष्ठतम धर्म है !
मुनिश्री देवेन्द्र मुनि जी की पुस्तक "खिलती कलियाँ मुस्कुराते फूल" से
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