“आयु का तेल देह के दीयों से रफ्ता
– रफ्ता कम हो रहा है , उम्र घट रही है
लोग कहते बढ़ रही है” आर्यिका माँ स्वस्ति भुषण जी कही ये पंक्तियाँ बरबस ही याद हो
उठती हैं ,जब कुछ लिखने बैठा हूँ रत्नत्रय श्रावक संस्कार शिविर व दसलक्षण विधान
के बारे में अपने संस्मरण !
उम्र शरीर पर अपना असर छोड़ ही
रही है !सायंकालीन ध्यान में लगभग दो –अढाई घंटे एकासन में बैठना मेरे लिए असंभव
सा रहा !पूर्ण एकाग्रता के बावजूद मुझे दो तीन बार आसन बदलना ही पड़ा ! और जैसे ही
उस दिन आचार्य गुरुवर गुप्तिनंदी जी के शब्द मेरे कानों में पड़े कि आज आप झूमकर ,नाचकर
,गाकर किसी भी तरह ध्यान और भक्ति कि
गहराई में उतर सकते हैं तो जैसे मेरे मन चाही पूरी हो गयी हो !
मुनिश्री चंद्रगुप्त और
आर्यिका माँ आस्थाश्री जी की मधुर ममतामयी वाणी में “ओम नम: अर्हते ऋषभ जिनाय”
सुनते सुनते मै पहुँच गया अक्टूबर 1991 में जब इसी जैन जतीजी के प्रांगन में गणिनी आर्यिका माँ ज्ञानमती जी
द्वारा रचित “कल्पद्रुम महामंडल विधान” आचार्य गुरुवर कुंथू सागर जी के सान्निध्य
में चल रहा था ,जिसमे मुझे भी आचार्य श्री का सान्निध्य मिला था ,कि समाचार आया कि
भिवानी के पास ग्राम रानीला में प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ प्रभु अन्य तेइस तीर्थंकरों
के साथ एक दिव्य मनभावन रूप में भूगर्भ से प्रकट हुए हैं ! पास ही में एक मनोहारी
प्रतिमा माँ चक्रेश्वरी की भी प्रकट हुई है ,तब सारा वातावरण उल्लास से भर गया था
, ये सोचते सोचते हुए मै कब खड़ा हुआ और झूमने ,नाचने लगा ये मुझे खुद भी नहीं पता
चला ! बस मुनिश्री और आर्यिका माँ श्री की आवाज ही कानों में सुनाई दे रही थी
,बाकी सब जैसे खो गया था !
यशोधर मुनि पर राजा श्रेणिक
द्वारा किये हुए उपसर्ग के दृश्य उपस्थित होते ही मुझे वो क्षण समरण हो आया जब
मैंने पहली बार अपनी याददाश्त में किसी नग्न दिगम्बर साधु के चरण स्पर्श किये थे
और वह इस युग के महान दिगाम्बराचार्य
देशभूषण जी थे जिनका दिव्य आशीर्वाद मुझे 8-9 वर्ष की उम्र में ही प्राप्त हुआ था ! आचार्य श्री उन दिनों कश्मीरी गेट
,दिल्ली में विराजमान थे व मुझे उनके दर्शन का सौभाग्य अपने चाचा जी के साथ जाने
पर हुआ था !आज भी उस क्षण को याद करके मै रोमांचित हो उठता हूँ ! धन्य है दिगम्बर
गुरुओं का तप और साधना और धन्य है इनका जीवन !
कमठ के जीव द्वारा मुनि श्री
पार्श्वकुमार पर उपसर्ग व उनकी समता व सरलता से कर्मों के बंधन को काट डालना
,मुनिश्री सुकुमाल पर पूर्व भव की बैरी गीदडी द्वारा उनके अंग –अंग का भक्षण
,महासती सीता की अग्नि परीक्षा , महासती चंदनबाला द्वारा तीर्थंकर प्रभु महावीर को
आहार दान के दृश्य भी आँखें नम कर गये !
अंतिम दिन में आचार्य श्री
द्वारा गौतम गन्धर प्रभु के द्वारा कहा गया महाप्रतिक्रमण करवाया गया जिसके
द्वारा विशेष रूप से हजारों की संख्या में
लोगों ने अपने कर्मों की निर्जरा की !
मेरे पास आचार्य गुप्तिनंदी
जी चरणों में नमन ,वंदन,अभिनन्दन के लिए शब्द नहीं हैं कि मै उनका आभार प्रकट करूँ
कि उनके व्यक्तिगत रूप से मुझे आह्वान न होता तो शायद मै अपने जीवन के इस बेहद
रोमांचकारी अनुभव से रिक्त रह जाता !ऐसे ही महान व्यक्तित्व के लिए किसी कवि की ये पंक्तियाँ याद आती हैं .......
है समय नदी की धार ,सभी बह जाया करते
हैं ,
है समय बड़ा बलवान प्रबल
,पत्थर झुक जाया करते हैं !
हमने देखा है लोग समय के
चक्कर खाया करते हैं ,
कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो
इतिहास बनाया करते हैं !!
और जैसे आचार्यश्री का ये
आह्वान हो कि .......
प्रभु का दर्शन पाना है तो
,खोज रहे क्यों धरती अम्बर ?
निर्मल ज्योति विराजित हैं
प्रभु ,सदा काल से तेरे अंदर !!
No comments:
Post a Comment