पूजा करना या करवाना
एक बार फूलों ने प्रकृति से शिकायत की -“तुम्हारे राज में हमारे साथ बड़ा अन्याय और
पक्षपात पूर्ण व्यव्हार हो रहा है ,हम सदैव पत्थरों की पूजा करते रहें ,उनके चरणों
में अपना जीवन समर्पित करते रहें ये कहाँ का न्याय है!”
प्रकृति ने कहा –“सच है !
तुम्हारे साथ न्याय नहीं हो रहा है ,तुम्हे पत्थरों की पूजा नहीं रुचती है तो न
करो ,अब से पत्थर तुम्हारी पूजा किया करेंगें !”
फूल प्रसन्न हो कर डाली पर
इतरा रहे थे ! पत्थर उनकी पूजा करने के लिए चरणों में आने लगे ! कुछ ही क्षणों में
फूलों का कचूमर निकलने लगा ,पंखुडियां टूट टूट कर बिखरने लगी !
संत्रस्त फूल क्षमा
प्रार्थना करते हुए प्रकृति के चरणों में पहुंचे –“देवी ! हमें पूजा का सम्मान
नहीं चाहिये ! पूजा ग्रहण करने की अपेक्षा पूजा करना ही हमारे लिए ज्यादा
श्रेयस्कर है !”
भगवान महावीर ने श्रमणों को
संबोधित करते हुए कहा था –कभी यश और पूजा प्राप्त करने की अभिलाषा मत करो !
पूजा करने वाले को पूजा स्वयं
प्राप्त होती है ,यश देने वाला स्वयं यश का वरण करता है ! दूसरों को सम्मान देने वाला स्वयं
सम्मानित होता है ! जो पूजा प्राप्त करने का प्रयत्न करता है उसे प्रताडना भी सहनी
पड सकती हैं !
श्री देवेन्द्र मुनि जी की पुस्तक “खिलती कलियाँ मुस्कुराते फूल” से
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