बुराई
एक लोकानुश्रुति है –सृष्टि
के आरम्भ में गाय और घोड़े में बड़ी मैत्री थी !दोनों जंगल में साथ साथ चरते और आनन्द से जीवन यापन कर रहे
थे ! एक दिन घोडा गाय से रूठ गया और उसके मन में एक कुविचार ने जन्म लिया ! वह
खोजते - खोजते मनुष्य के पास पहुंचा और कहा –तुम्हे एक ऐसा जानवर बताऊँ , जिसके
स्तनों में दूध भरा हुआ है ,उसे घर में खूंटे से बाँध लो और रोज दूध दुहकर पियो !
मनुष्य के मुहँ में पानी भर
आया –लेकिन एक गंभीर समस्या थी –इतनी दूर जंगल में कैसे जाए ? बीच में कितने पहाड़
,नदी नाले और संकरे रास्ते और फिर बियाबान जंगल !
घोड़े ने कहा –घबराओ मत !मेरी
पीठ पर बैठ जाओ ,मै तुम्हे पवन वेग से अभी वहाँ लिए चलता हूँ !मनुष्य घोड़े की पीठ
पर बैठा और बात की बात में आगे घने जंगल में पहुँच गया !घोड़े की पीठ पर हुई आनन्द मयी यात्रा ने मनुष्य के मन
को जैसे मोह लिया था !
घोड़े ने गाय की ओर इशारा
किया तो मनुष्य ने उसे डोरी से बाँध लिया !वापस जाने की समस्या आई तो घोडा उसे फिर
से पहुँचाने घर तक आया !मनुष्य ने एक खूंटे से गाय को बाँधा व एक खूंटे से घोड़े को
!घोडा हिनहिनाया !कहा –महाशय !अब मुझे छुटटी दीजिए !
आदमी ने व्यंग्य मिश्रित
हँसी के साथ कहा –अब छुटटी की बात भूल जाओ ! गाय का दूध पियूँगा और घोड़े की पीठ पर
चढ कर सैर करूँगा !
गाय ने रम्भाकर कहा –जैसा
किया वैसा पाया ! बुरे काम का बुरा नतीजा !
जो दुसरे के लिए गड्ढा खोदता
है ,वह स्वयं भी गड्ढे में गिर जाता है ! बुराई ,इर्ष्या मन के अंगारे हैं ,अंगारा
दुसरे को जलाने से पहले अपने आश्रय को ही
जलाता है ,इर्ष्या और बुराई भी बुराई भी दूसरों का अहित करने से पहले अपने उत्पादक
–ईर्ष्यालु व अहितचिन्तक का ही नाश करते हैं !
श्री देवेन्द्र मुनि जी की पुस्तक “खिलती कलियाँ
मुस्कुराते फूल” से
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