जीवन सेज नहीं सुमनों की,
सो जाओ खर्राटे मार
जीवन है संग्राम निरंतर
प्रतिपल कष्टों की भरमार !
कहीं बिछे मिलते हैं काँटे,
कहीं बिछे मिलते हैं फूल
जीवन पथ में दोनों ही का
स्वागत ,दोनों ही अनुकूल !
जीवन नौका का नाविक है ,
एक मात्र पुरुषार्थ महान
सुख दुःख की उत्ताल तरंगें
कर ना सके उसको हैरान !
मुनि श्री अमर मुनि की “अमर
क्षणिकाएं” से
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