सच्ची श्रद्धा और भक्ति
नारायण श्रीकृष्ण जब भी
हस्तिनापुर जाते तो कभी भी दुर्योधन के महल में न ठहर कर विदुर के घर जा कर ठहरते
! एक समय जब वे विदुर जी के घर पहुंचे तो
उस समय पर विदुर जी घर पर नहीं थे ! वह बाहर गये हुए थे परन्तु उनकी पत्नी घर में
ही थी ! वो श्रीकृष्ण को देख कर इतनी प्रसन्न हुई कि उन्हें समझ ही नहीं आया कि
श्रीकृष्ण को कहाँ पर बैठाएं ! उन्होंने घर में कुछ ढूँढने की कोशिश की पर उन्हें
कुछ समझ नहीं आया ! अन्त में एक लकड़ी का स्टूल ले कर आई ! वह श्रीकृष्ण के आने पर
इतनी प्रसन्न थी कि उन्हें कुछ याद नहीं था कि वह क्या कर रही हैं ! उन्होंने
स्टूल को उल्टा बिछा दिया और श्रीकृष्ण को उस पर बैठने के लिए कहा ! उसके पश्चात
उन्होंने श्रीकृष्ण को परोसने के लिए घर में और रसोई घर में कुछ ढूँढना शुरू किया
! श्रीकृष्ण भी बगैर कुछ कहे उस स्टूल पर उसी अवस्था में बैठ गये ! इधर विदुर जी
की पत्नी को एक टोकरी में कुछ केले दिखाई
पड़े और उन्ही केलों को श्रीकृष्ण को खिलाने के लिए ले आई !
उन्होंने केले छीलने शुरू
किये और फिर अपनी पहले वाली गलती दोहराने लगी ! केले छिलती जा रही थी व उसके छिलके
श्रीकृष्ण को देती जा रही थी ,गुद्दे को साइड में रखती जा रही थी ! श्रीकृष्ण भी
बड़े आनन्द से उन केले के छिलकों को बगैर कुछ कहे खाए जा रहे थे ! उसी समय विदुर घर
पहुंचे तो उन्होंने सारा घटना क्रम देखा और देख कर चौंक गये !विदुर ने जब पत्नी को
उनकी गलती बाताई तब वह अचानक जैसे नींद से जागी ! सच्ची श्रद्धा,भक्ति सब कुछ भूला
देती है तब वह श्रीकृष्ण को केले का गुददा छील कर देने लगी !
श्रीकृष्ण ने कहा –ये गुद्दा
उतना स्वादिष्ट नहीं है ,जितना कि पहले आप द्वारा स्नेह और भक्ति के द्वारा खिलाए
गये छिलके !
सच्चे प्रेम ने और निश्छल
भक्ति ने उन छिलकों में भी वो मिठास भर दी थी जो उस केले के गुद्दे में भी
नहीं थी !
भक्ति में व्यक्ति यह भूल
जाता है कि क्या करना है और क्या नहीं करना है ! ये मस्तिष्क की वह दशा है जब
व्यक्ति अपने आस पास की चीजो को भूल जाता है ! सोचो भगवन या मान लो कि गुरु ,जिनके
प्रति आप के मन में समूर्ण समर्पण है ,आप के सामने बगैर किसी पूर्व सुचना के आ
जाएँ तो आपकी क्या स्थिति होगी ?
बाल ब्रह्मचारिणी ‘माँ कौशल जी’ की पुस्तक “ Way to
happiness” से ! हिन्दी अनुवाद में कुछ त्रुटि रह गयी हो तो सुधिजन
उस को सुधार दें !
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