ज्योतिर्मयी ........नारी
नारी ,तेरी गरिमाओं के,
शुष्क न दिव्य स्त्रोत ये होंगे
तेरी महिमाओं के उज्ज्वल,
कभी न धुमिल तारे होंगे !
सरस्वती तु ,लक्ष्मी तु है ,
चंडी तु है सदा शिवानी
शिव संवर्धक अशिव नाशिनी ,
तेरी लीला जन कल्याणी !
मन विराट तव नभ मंडल सा ,
तु देवी मृदु करुणा की है !
दिव्य मूर्ति तु पुण्य योग
की ,
नहीं मूर्ति अघ छलना की है !
तु बदले तो घर बदलेगा ,
जग बदलेगा ,युग बदलेगा
जीवन के निर्माण मार्ग पर
स्वर्ग हर्ष गदगद उछलेगा !
तुझे राक्षसी कहा किसी ने ,
भूल गया वह पथ यथार्थ का!
अपनी दुर्बलता ,कुंठा का ,
डाला तुझ पर भार व्यर्थ का !
मुनिश्री उपाध्याय अमर मुनि
जी की “अमर क्षणिकाएं” से
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