मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Tuesday, 11 December 2012

धर्म प्रेम



धर्म प्रेमियों को जितना प्रेम अपने विषय –कषाय व स्त्री - पुत्र ,कुटुंब –परिवार से होता है ,उससे भी कई गुना प्रेम अपने साधर्मी जनों से होता है ,जितना प्रेम साधर्मी जनों से होता है उससे भी कई गुना प्रेम देव शास्त्र गुरु व धर्म तीर्थों में होता है तथा जितना प्रेम धर्म तीर्थ आदि धर्म के साधनों में होता है उससे भी कई गुना प्रेम अपनी ज्ञायक स्वरुप भगवान आत्मा से शुद्ध आत्मा से होता है !

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