निज परिणति से हम दूर हुए
यदि हमें सच्चा सुख व असली यश
कहीं प्राप्त हो सकता है तो वह है हमारा चरित्र ! चरित्रवान व्यक्ति को यह दोनों
बातें अनायास ही प्राप्त हो जाती हैं !चरित्रवान व्यक्ति ही जीवन में सुख व यश के
पात्र होते हैं !
निज परिणति से हम दूर हुए
परिजन के पालन की धुन में ,
धन संचय की उधेड़बुन में ,
पर को समझाने के चक्कर में !
निज को समझाना भूल गये!
निज परिणति से हम दूर हुए !!
सब धन की धुन में हैं अटके,
पर परिणति में हैं भटके ,
पर के सत्पथ दिग्दर्शन में !
संकल्प विकल्प सहस्त्र हुए !
निज परिणति से हम दूर हुए !!
पर से सुख पाने के भ्रम में,
वैभव संग्रह के श्रम में ,
पर में ही हम मशगुल हुए!
थक थक कर चकनाचूर हुए !
निज परिणति से हम दूर हुए !!
पद पाने की धुन के पक्के ,
खाकर के भी सौ सौ धक्के ,
सच्चे झूठे वादे करके !
पद पाने में हैरान हुए !
निज परिणति से हम दूर हुए !!
पंडित रतनचंद जी जैन भारिल्ल
“ऐसे क्या पाप किये मैंने” में
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