जैसे
मांस पर गिद्ध मंडराते हैं ,वैसे ही महिलाओं पर ये कामान्ध नर गिद्ध मंडराते ही
रहते हैं ! गिद्ध तो बेचारे मरे हुए पशुओं का ही मांस नोचते खाते हैं ,पर ये कामी कुत्ते तो ज़िंदा नारियों का
मांस नोचने को फिरते हैं कदाचित किसी महिला में कहीं कोई कमजोरी दिखी नहीं ,कोई
महिला बेचारी अकेली दिखी नहीं ,उसे डरा धमकाकर ब्लकमेल कर और जोर जबरदस्ती कर
पथभ्रष्ट करने से नहीं चुकते ! कवि की ये पंक्तियाँ बरबस ही याद हो उठती हैं
नारी
जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
आँचल में
है दूध और आँखों में पानी
आज देश
/प्रदेश में सरकारें चाहे जो भी दावा करें, कानून व्यवस्था की स्तिथि ठीक नहीं है। चोराहों पर पुलिस
वालों को चंदा इकठ्ठे करने के सिवा शायद कोई काम नहीं! अकेले रहने वाली महिलाओं का
जीवन सुरक्षित नहीं रह गया है। राह चलते महिलाओं के साथ बदतमीजी, चेन स्नेचिंग आम बात है। लेकिन इस चलती बस में सामूहिक बलात्कार की शर्मनाक व वीभत्स घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है ! जागो हिन्दुस्तान जागो ......
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