विश्वास से विश्वास बढ़ता है
! संदेह की कंटीली झाडी में उलझा हुआ विश्वास का वस्त्र फट जाता है ! फटे हुए
वस्त्र की सिलाई कितनी ही सफाई से की जाए , वह एक रूप नहीं हो सकता ! विश्वास की
आंख में पड़ी हुई संदेह की फांस दिन रात सालती रहती है ,व्यक्ति को निश्चिन्त होकर
जीने नहीं देती !
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