जय जिनेन्द्र मित्रों !
नमस्कार ! शुभ प्रात:
कितनी प्रासंगिक हैं आज के
सन्दर्भ में कवि की यह पंक्तियाँ ........
अखिल विश्व में एक सत्य ही,
जीवन श्रेष्ठ बनाता है ,
बिना सत्य के जप तप योगाचार
भ्रष्ट हो जाता है !
यह पृथ्वी , आकाश और यह रवि
,शशि, तारामंडल भी ,
एक सत्य पर आधारित हैं
,क्षुब्ध महोदधि चंचल भी !
जो नर अपने मुख से वाणी बोल
पुन: हट जाते हैं ,
नर तन पाकर पशु से भी
वे ,जीवन नीच बिताते हैं !
मर्द कहाँ वे जो निज मुख से कहते थे वो करते थे ?
अपने प्रण की पूर्ति हेतु जो , हँसते हँसते मरते थे !
गाडी के पहिये की मानिंद ,
पुरुष वचन चल आज हुए ,
सुबह कहा कुछ ,शाम कहा कुछ
,टोके तो नाराज हुए !
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