मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Tuesday, 26 February 2013

“क्षमा वीरस्य भूषणम्”


जय  जिनेन्द्र मित्रों ..प्रणाम ! शुभ प्रात:
“क्षमा वीरस्य भूषणम्” 

अँधेरे को कभी अँधेरे से समाप्त नहीं किया जा सकता ! अँधेरे को समाप्त करने के लिए चिराग रोशन करना ही होगा ! दर्पण मे मुख देखने के लिए जिस प्रकार दर्पण का धुल रहित होना आवश्यक है ,उसी प्रकार क्षमा करने वाले का मन भी उतना पावन होना चाहिए जितना कि उस की वाणी और तन !  सच्चे ह्रदय से मांगी गयी क्षमा तो कठोर से कठोर ह्रदय को भी पिघला सकती है ,फिर जो तुम्हारे मित्र ही हैं वो तो एक आवाज मे ही दौड़े न चले आयें तो कहना  !

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