जय जिनेन्द्र मित्रों ...प्रणाम ! शुभ प्रात: !
हे प्रभू ! मेरे सभी अपराध क्षम्य हों ! आप
प्रजापति हो दया निधान ! हम
प्रजा हैं ,दया के पात्र ! आप पालक हो ,हम बालक हैं !
ये सब आपकी ही निधि है ,हमें आपकी ही सन्निधि है ,निकटता है ! आप ही एक शरण रूप
हैं!
आर्यिका माँ प्रशान्तमति माताजी “माटी की मुस्कान”
मे ..गुरुदेव आचार्य विद्यासागर जी की “मुकमाटी” पर आधारित !
No comments:
Post a Comment