मित्रों जय जिनेन्द्र
....शुभ प्रात: प्रणाम
दो महान धर्माचार्यों
का मिलन
दिन था 4 फरवरी 2013 व अभूतपूर्व मंजर था दिगम्बर परम्परा के महान दो आचार्यों आचार्य श्री
महावीरकीर्ति जी व आचार्य श्री देश भुषण जी के महान शिष्यों क्रमश: गंधराचार्य
श्री कुंथूसागर जी व बाहुबली सागर जी के सुयोग्य शिष्यों क्रमश: आचार्य श्री
गुप्तिनंदी जी व आचार्य श्री धर्मसेन जी के पावन वात्सल्य मयी मिलन का !
आचार्य श्री धर्मसेन जी
विहार करते हुए रानीला तीर्थ के दर्शन हेतु रोहतक से निकलने वाले थे व आचार्य
गुप्तिंनंदी जी रोहतक में विराजमान हैं ही ! आचार्यश्री गुप्तिनंदी जी के संघ के
मुनि श्री महिमा सागर जी ,मुनिश्री सुयशगुप्त जी व मुनि श्री चन्द्रगुप्तजी उनकी अगवानी करने भगवान महावीर
पार्क पहुंचे व आचार्य श्री गुप्तिनंदी जी उन्हें लिवाने दिगम्बर जैन जतीजी के
बाहर बाकी संघ के साथ उपस्थित थे !
जब दोनों आचार्यों का
मिलन हुआ तब दोनों ने वात्सल्य भाव से एक दुसरे को गले लगाया व आचार्य धर्मसेन जी
ने झुककर आचार्य गुप्तिनंदी जी के चरण स्पर्श किये ! सारा वातावरण संतों की जय-जय
कार से गुंजायमान हो गया !
सबसे सुखद व मधुर क्षण
जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता वो थे रात्रि को स्वयं आचार्य श्री
गुप्तिनंदी जी व मुनियों के द्वारा विहार करके पधारे आचार्यश्री धर्मसेन जी व
संघस्त एक क्षुल्लक जी की वैय्याव्रत्ति का जिसे देखकर मौजूद सभी व्यक्तियों की
आँखें नम हो गयी !
मै खो गया बचपन की उस
धर्ममय याद में जब मुझे 7-8
वर्ष की उम्र में इस युग के
महान दिगम्बर सन्त आचार्य श्री देशभूषण जी के दिव्य दर्शन हुए थे जो मेरी याददाश्त
में किसी दिगम्बर गुरु के प्रथम दर्शन थे ! आज भी जब कभी आँखें बंद करके सोचता हूँ
तो ऐसा लगता है कि आचार्य जी साक्षात मेरे सामने खड़े मुझे आशीर्वाद दे रहे हैं ! आचार्य
श्री कुन्थुसागर जी व आचार्यश्री बाहुबली सागर जी के दर्शन भी इस जीवन में मुझे
प्राप्त हुए लेकिन आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी के दर्शन नहीं हो सके !
धन्य है इन गुरुओं का
तप, त्याग और इनकी पावन चर्या व इनका वात्सल्यमयी ,करुणामयी जीवन ! धन्य हैं ये
नेत्र मेरे ,धन घडी व शुभ दिन ! ऐसे
पावन गुरुओं के चरणों में मेरा
शत-शत नमन ,वंदन, अभिनन्दन !
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