जय जिनेन्द्र दोस्तों ! भाइयों
और बहनों ! प्रणाम ! नमस्कार ! शुभ प्रात:
!
क्या मार सकेगी मौत उसे औरों के
लिए जो जीता है ,
मिलता है जहाँ का प्यार उसे
औरों के जो आँसू पीता है !
होना होता है अमर जिन्हें वो
लोग तो मरते ही आये,
औरों के लिए अपना जीवन कुर्बान
वो करते ही आये !
धरती को दिया जिसने बादल वो
सागर कभी ना रीता है ,
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